माँगा नहीं, यदपि पहचाना,
पाया कभी न, केवल जाना-परिचिति को अपनापा माना।
दीवाना ही सही, कठिन है अपना तर्क तुम्हें समझाना-
इह मेरा है पूर्ण, तदुत्तर परलोकों का कौन ठिकाना!

शिलङ्, 8 फरवरी, 1945

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.