हर दिन रहती है सपनों की दोपहर
लबालब जलाशय में तैरता जैसे बेहद शांत द्वीप
पेड़ की फुनगी पर बैठी चिड़िया पुकारती है मुझे
नहीं जानती मैं हूँ यहां नीचे
अपने शरीर को, चार अंगों को घुमेर देती नदी
सारी रात अन्धेरे में खुली रहने वाली मेरी आँखें
चिड़िया की परछाई-सी
नज़र आती हैं जल में
अन्धेरे में भी मुझे ताकती रहती हैं चिड़ियाँ
एक द्वीप मेरे भीतर चिड़ियों का
गाता रहता है गीत उजालों के:
काफ़ी पहले विदा हो गया मेरा घर
नारियल और केलों के पेड़ो के साथ
सपनों में देखती हूँ खिली हुई दोपहर ने
गढ़ दिया है एक स्वच्छन्द द्वीप