यह कैसा है महावृत्त
जो है अपरिमित
जिसमें व्यास है न त्रिज्या
उसे छूना जितना चाहूँ
उसकी परिधि भी लगती है
तब क्षितिज सी मिथ्या
बिना केंद्र बिंदु के
किस प्रकार से -
खींची है किसने यह
बिना आकार की यह गोलमाल दुनिया
न ओर का पता, न छोर का
फिर भी -
आकाश को भी
अपने परों से ..नाप रही है
हर मन के घोंसलों से ......उड़कर
एक नन्ही चिड़िया