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एक परिंदा / शिवजी श्रीवास्तव

26
एक परिंदा
नाप रहा नभ को
हौसला तो है।
27
टूट ही गया
तिलिस्म कोहरे का
बिखरी धूप।
28
पाँव पसारे
सुस्ता रही छत पे
फागुनी धूप।
29
झाँका थोड़ा सा
चीर कुहासा रवि
हँसी जिंदगी।
30
मोल न जाना
जब थे साथ पिता
अब आँसू हैं।
31
मैं तो था मिट्टी
तुम कुम्हार सच्चे
नमन पिता।
32
एक स्वेटर
गर्माता हैअब भी
माँ ने बुना था।
33
वृक्ष नहाए
सरसी महकी भू
झरा दौंगरा।
34
निशा उनींदी
भोर ओढ़नी खींचे
उषा मुस्काए।
35
सूने उर में
यादों के घन घिरे
नैन बरसे।