सरदी के ठिठुरे शरीर के
अंग-अंग को छू कर
सूरज की किरणों ने
बँधी मुट्ठियों को खोला
फिर अंग-अंग की सिकुड़न हर कर
और रक्त का संचालन कर
स्वस्थ बनाया
आँख उठायी
देखा, कुहरा कहीं नहीं है
नहीं भाग कर चला गया वह दूर दृष्टि से
क्षितिज-शरण में
बीस कदम पर उन पेड़ों को खड़े निहारा
जो प्रकाश में
सहज समीरण की लहरों से खेल रहे थे
देखा उनकी श्यामल हरियाली में
हलके धुएँ की तरह
कुहरा
किरणों से परास्त हो
छिप कर रहने का उद्योग अधिक करता था
ऐसा लगता था कि
सुविस्तृत आसमान का
नीला नीला रंग छूट कर
पेड़ों के पत्तों पत्तों में
गिरते गिरते उलझ गया है
चरखी, पेड़की और किलहँटा
गोरैया, महोख, बनमुर्गी
चारा चुनने दरवाज़े पर
जाने कहाँ कहाँ से आये
सूर्योदय से ही
चिर अपरिचित