मुझमें अपनापन बोता है
साँझ-सकारे यह मेरा घर
उगते ही सूरज के —
रोशनदान बाँटते ढेर उजाले
धूप के परदों में
खिल-खिल उठते हैं खिड़की के जाले
चिड़ियों का जैसे खोता है
झिन-झिन बजता है कोई स्वर
एक हंसी आँगन से उठती
और फैल जाती तारों पर
मन की सारी बात लिखी हो
जैसे उजली दीवारों पर
एक प्यार सब कुछ होता है
जिससे डरते हैं सारे डर
दरवाज़े पर साँकल माँ की
आशीषों से भरी उँगलियाँ
पिता कि जैसे बाम-फूटती
एक स्वप्न में सौ-सौ कलियाँ
जहाँ परायापन रोता है
लुक-छिप ख़ुशी बाँटती मन भर