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एक प्रेम कविता / पूनम मनु

धड़कनों में उलझती
यहाँ वहाँ भीतर ही बिखर जाती
क्यों मुझसे
एक प्रेम कविता नहीं लिखी जाती
आँखों की लाल धारियों में
अटक जाता है प्रेम
बार-बार ही
कलम में स्याही की जगह
ठहरता क्यों नहीं
सुर्ख होंठों की मासूम हंसी में
लजाकर सिमट जाता नाशुक्रा
शिशु-सा सहम
हृदय से लिपट जाता
नहीं उतरता
ठहरता कविता बन प्रेम
कागज़ पर
क्यों...?
प्रेम,
जिस पर
लिखते हो तुम कविता रोज ही
मैं क्यों चाह कर भी
नहीं लिख पाती।