भूल जाने से पहले ही उन्होंने थाम लिया
आँधी के चाटे हुए पेड़ को
सजीव बनाया जड़ के शुष्क होठों को
सीने के लहू से
सहारा दिया
धूप-बारिश में
सर्दी-गर्मी में
एक दिन तन कर खड़ा हुआ
उनकी चाहत का पेड़
फूल-फल से लद गया
अब वे बाँसुरी बजाते हैं सुरीली
सुबह शाम रात
पेड़ के नीचे !
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार