’माँ’,
यह मेरे नाम के बाद
एक और
नाम क्यों लगता है?
क्या सब के मन को
वह नाम
अधिक लुभाता है?
उसमें ऐसा क्या है
जो हर
किसी को भाता है?
तुम ही बताओ...
’माँ’
वह नाम
मेरे नाम के बाद
क्यों लगता है?
मुझे दो नाम से
कोई भी क्यों बुलाता है?
ऐसा कर के
आखिर क्या जताता है?
इस प्रश्न का उत्तर
क्यों कोई भी
नहीं दे पाया है?
जब से जनम लिया है मैंने,
इन दो नामों को
संग-संग ही जिया है मैंने।