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एक बेचैन घड़ी में / मिक्लोश रादनोती

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मैं हवा में ऊँचाइयों पर रहता था, हवा में, जहाँ सूरज था
हंगरी, अब तुम अपने टूटे हुए बेटे को वादियों में बंद करते हो!
तुम मुझे सायों में लपेटते हो और शाम के दृश्य में
सूर्यास्त की तपिश मुझे आराम नहीं देती

मेरे ऊपर चट्टानें हैं, दमकता आकाश दूर है
मैं गूंगे पत्थरों के बीच गड्ढों में रहता हूँ
शायद मुझे भी चुप हो जाना चाहिए। वह क्या चीज़ है
जो आज मुझसे कविताएँ लिखवा रही है? क्या वह मौत है? कौन पूछता है?

ज़िन्दगी को कौन पूछता है,
और इस कविता को--इन चिंधियों को?
जान लो कि एक आवाज़ तक नहीं होगी
कि वे तुम्हें दफनाएंगे भी नहीं, कि घाटी तुम्हें रोक नहीं पाएगी

हवा तुम्हें बिखेर देगी, लेकिन कुछ अरसे के बाद
एक पत्थर से वह गूँजेगा
जो मैं आज कहता हूँ, और बेटे और बेटियाँ
जब बड़े होंगे तो उसे समझ लेंगे।


रचनाकाल : 10 जनवरी 1939

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे