Last modified on 6 फ़रवरी 2011, at 13:03

एक मंज़र / साहिर लुधियानवी

उफक के दरीचे से किरणों ने झांका
फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये

सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख्सारों ने घूँघट उठाये

परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके
पुरअसरार लै में रहट गुनगुनाये

हसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे सब्ज पेड़ों के साए

वो दूर एक टीले पे आँचल सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाये