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एक मसा / ‘हरिऔध’

 
देख कर ऊँचा सजा न्यारा महल।
और गहने देह के रत्नों जड़े।
पास बैठी चाँद-मुखड़े-वालियाँ।
फूल ऐसे लाडिले, सुन्दर, बड़े।1।

याद कर फूली हुई फुलवारियाँ।
फूल अलबेले महँक प्यारी भरे।
थी फलों से डालियाँ जिनकी लदी।
बाग के वे पेड़ पीछे छरहरे।2।

फल रसीले और खा व्यंजन सभी।
मुख सुखों का देख मन माना हरा।
तन लगे ठंढी हवा आनन्द पा।
रात में अवलोक नभ तारों-भरा।3।

कह उठा एक, राज-मदमाता हुआ।
भौंह दोनों चौगुनी टेढ़ी किये।
कौन मुझ सा है आह! मैं धन्य हूँ।
है बना संसार सब जिसके लिए।4।

एक मसा उस काल उसकी नाक पर।
बैठ कर बोला लहू पी कनमना।
है बना तेरे लिए संसार सब।
और मेरे वास्ते तू है बना।5।