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एक माड़ो सपनो / मदन गोपाल लढ़ा

बा लपर-लपर कर‘र बूक सूं
तातो लोही पीवै
अंधार-घुप में बिजळी दांई
चमकै उणरी आंख्यां
मून मांय सरणाट बाजे
उणरी सांस
म्हैं एकलो
डरूं धूजतो
कदी उणनै तकावूं
अर कदी हाथ में भेळी करयोड़ी कवितांवां नै ।