क्या मैं यह नहीं जानता कि धुंधलके में
भटकते तिमिर को नहीं मिल सकता कभी भी प्रकाश?
क्या मैं कोई ऐत्य जन्मा हूँ कि कुछ के सुख से अधिक
करोड़ों के सुख के लिए मैं महसूस नहीं करता?
क्या पंचवर्षीय योजना ने हमें परखा नहीं है, हमें पार
पार नहीं कर लिया है?
और उसके साथ क्या मैं भी नहीं उठता और गिरता हूँ?
लेकिन मैं अपने मानस का क्या करू‘ं
जो निश्चेष्ट है सबसे अधिक।
महान सोवियत के इन दिनों में
जबकि जगह मिलती है सबसे अधिक बलवती उत्तेजना को,
निर्रथक है कवि के लिए एक स्थान रिक्त रखना
लेकिन खाली नहीं है अगर एक जगह
तो यह खतरनाक बात है।
अंग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह