मुझे नहीं चाहिए
मुट्ठी भर आसमां
मुझे चाहिए
मेरे हिस्से की पूरी ज़मी
जिस पर .....
सदी दर सदी
पसीना बहाया मैंने
और फसल रही तुम्हारी
मुझे चाहिए मेरा हक
नहीं चाहिए खैरात
जिसे देकर हर बार
तुम मुक्त हो जाते हो
मुझ पर और मेरे पूर्वजों पर
किये गए अत्याचारों और
गुनाहों से
मुझे चाहिए समता और सम्मान
नहीं चाहिए
तुम्हारी दया, करुणा और
सहानुभूति
जिसका करके गुणगान
तुम बनते हो महान
मुझे नहीं चाहिए
अपने भीतर चलने वाले
अनुभवों की आग को
बुझाने वाली छोटी-सी
अभिव्यक्ति
मुझे चाहिए
अनुभवों से धधकता
जनसमूह विशाल
जो अपनी अभिव्यक्ति को
बना सके ‘मशाल’।