कल गहराती हुई
जाती हुई
जब शाम थी
इक रूह
मेरे रूबरू थी
बात मुझसे
कर रही थी
रस की बूंदे झर
रही थीं
मल्लिका का फूल
कोमल गात
कोमल बात वाला
था मुखातिब प्राण से
फुसफुसाता कान में
प्राण मेरे सुन रहे थे
प्राण मेरे कह रहे थे
प्राण की सरगोशियों में
खुशबुओं की बात थी
नेह की बरसात थी
कल शाम ने
मेरे सामने
इक आईना था धर दिया
यूँ लगा अपनी छवि
देखी तुम्हारे रूप में
पाई तुम्हारी रूह में
ओ मल्लिका। ओ मल्लिका।