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एक मौन / पूनम मनु

गहन प्रेम की अनुभूति
सही मध्य हमारे पर,
सब गौण
मेरे मस्तक की रेखा
तुम्हारे हृदय पर
खिंच जाये पर
नेत्रों में ही आश्वस्त हो
पूछना
कौन?
प्रीत भरे स्पर्श
के स्पंदन
का आभास होने पर
प्रत्युत्तर में
बस एक मौन
रात्रि के तमस का पहर हो
या हो कोई
दिन का उजियारा पथ
एक राह, एक दिशा
साथ सब
पर एक भ्रम
जो कभी टूटे न,
समय के पंख पर
झूलते-झूलते
एक दिन मैं थक
भी जाऊँ तो भी तुम चुप
उड़ते–विचरते रहना
उस आकाश में
जो हमारा है,
हमारे लिए ही रहेगा
वहीं कहीं मिल जाऊँगी मैं भी
सितारा बन कर
एक दिन।