गंगा की धारा-से लगते दूर दूर तक बादल,
नीलम के तट, स्निग्ध दूधिया लहरों का वक्षस्थल!
गोदी में तिर रहा इन्दु सिर धरे इन्द्रधनु-मंडल,
मेरे मन-सी चपल वायु भी पल दो पल को निश्वल!
पलकों से आँखें कहती हैं—देखो मुँद मत जाना,
सदा नहीं रहती यह दुनिया इतनी कोमल उज्जवल!