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एक रोगिणी बालिका के प्रति / अज्ञेय

सीखा है तारे ने उमँगना जैसे धूप ने विकसना
हरी घास ने पैरों में लोट-लोट बिछलना-विलसना,
और तुम ने-पगली बिटिया-हँसना, हँसना, हँसना,
सीखा है मेरे भी मन ने उमसना, मेरी आँखों ने बरसना,
और मेरी भावना ने
आशीर्वाद के सुवास-सा तुम्हारे आस-पास बसना!

दिल्ली, सितम्बर, 1954