एक रोज़ मैंने देखी ऊसर ज़मीन
कुछ रोज़ बाद वहाँ कुदाल लिए एक आदमी था
एक रोज़ मैंने देखी बित्ता भर नमी
कुछ रोज़ बाद वहाँ पत्थरों से झाँकती दूब थी हरी कच्च
पत्थर अब दूब में मगन हो रहे थे
दूब अब आदमी में हरी हो रही थी
रचनाकाल : जुलाई 1991
एक रोज़ मैंने देखी ऊसर ज़मीन
कुछ रोज़ बाद वहाँ कुदाल लिए एक आदमी था
एक रोज़ मैंने देखी बित्ता भर नमी
कुछ रोज़ बाद वहाँ पत्थरों से झाँकती दूब थी हरी कच्च
पत्थर अब दूब में मगन हो रहे थे
दूब अब आदमी में हरी हो रही थी
रचनाकाल : जुलाई 1991