एक लगन बन, अमन-अमन बन,
अन्य-अन्य का मनन न कर मन।
नहीं केन्द्र में ऋतु के बन्धन,
कर्दममलिन तमस दुर्दर्शन,
आत्मक्रीड ऋतगामी बन मन,
स्वयं घटन-विघटन।
जिह्म अनृत का पथतमसावृत,
अमृत प्राण से ऋत-पथ छन्दित,
एक अखण्ड सूत्र से ग्रन्थित,
मरण और जीवन।
ऋत-प्रवीत क्षर, अक्षर चेतन,
रोचमान रवि-शशि, तारागण,
करते ऋत-पथ का न चिरन्तन,
देश-काल लंघन।
(10 दिसम्बर, 1973)