एक विराट हिमालय रखकर
पीड़ा के सब आवेगों पर
कभी न लेकर नाम तुम्हारा
मैं जी लूँगी ।
एक पराया सा अपनापन
घेरे जीवन का सूना क्षण
बरसे घन, आँखों का आँचल
मैं सी लूँगी ।
कहीं -कहीं सँझा मुरझेगी
कहीं व्यथा की कथा कहेगी
तभी राग के मधु आसव को
मैं पी लूँगी ।