कॉरपोरेशन की कुल्हाड़ी से बचे
एक पेड़ ने कहा-
वे सब स्वर्गवासी हुए
मैं बच रहा!
न जाने किस जनम का
मेरा पुण्य फला,
कि महनगरीकरण- यज्ञ में,
मैं नहीं जला!
ओ प्रिय छात्रों,
मेरे लिए भी थोड़ा ऊधम मचा दो!
मुझे इस कुल्हाड़ी- छाप
मौत से बचा दो!
कहोगे तो गर्मी की छुटटियों में
मेघ को बुला दूंगा,
चाहोगे, तो सावन में
तुम्हारी प्रिया को झूला दूँगा!
ओ इंश्योरेंस वालों,
मेरा एक भारी- सा बीमा
करवा दो,
मैं तुम्हें प्रीमियम में,
फल दूँगा, फूल दूँगा,
सुस्ताने छाँव दूँगा,
ठंडी हवाएँ और बुलबुल का
गाँव दूँगा!
तुम, ओ सभी तुम!
जो दूर तक दीख कर
हो जाते हो कहीं गुम!
मुझे स्थायी करवा दो
इसी कोने में!
इन दिनो बड़ा वक़्त जाता है
रोनें में!