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एक सलोना बादल / सुनीता जैन

एक सलोना बादल छाया,
धुआँधार बरस कर
चला गया खाली-सा

ये खड्डे और खाई,
सहसा भर गए गले तक,
फिर वैसे ही सूख गए
पहले-सा

लेकिन जो भीतर
खींच लिया,
अंतस तक अपना
सींच लिया,

उस जल से
जल हो गई धरती

बाँहों में बादल
भींच लिया।