Last modified on 28 जुलाई 2010, at 01:40

एक साँस्कृतिक चूहे की कुतरन-1 / भारत भूषण अग्रवाल

एक सांस्कृतिक चूहे की तरह
कुतरता रहा हूँ
कभी लोक-प्रथाएँ, कभी इतिहास के पन्ने
और कभी सड़क दुर्घटनाएँ

पहले मित्र बनाए
और फिर परिवार
बरसों एक राजनीतिक पार्टी के बनाने में मशगूल रहा
दफ़्तर में अफ़सर बनाता रहा
और शामों को एक साहित्यिक संस्था
पर अब सोचता हूँ यह सब बनाना छोड़कर
अगर मैं ख़ुद कुछ बन सकूँ ।