हरसिंगार की
बारिश में
तुम लेटे थे
मैं बैठी थी
रची जा रही थी
एक और सृष्टि
तुम्हारी पीठ पर
पत्ते की नोंक से
लिख बैठी थी
प्यार
उतरती गई
किसी गहराई में
भीगती रही
धरती
उलीचती रही
सागर
तुमने
करवट बदली
लोप हो गई
मैं
हरसिंगार की
बारिश में
तुम लेटे थे
मैं बैठी थी
रची जा रही थी
एक और सृष्टि
तुम्हारी पीठ पर
पत्ते की नोंक से
लिख बैठी थी
प्यार
उतरती गई
किसी गहराई में
भीगती रही
धरती
उलीचती रही
सागर
तुमने
करवट बदली
लोप हो गई
मैं