सेठों के बीच भी
एक सेठ है जो
बनना चाहता है
मेरी कविता का विषय
सेठगीरी के अवगुण आंकता
अगर न बनाऊँ
उसे कविता का विषय
तो क्या अधूरा नहीं रहेगा
मेरा सामाजिक यथार्थ
कस्बे का सबसे बड़ा सेठ है वह
फिर भी देशी और सादी है
उसकी वेश-भूषा
चलता है पैदल या साईकिल पर
अपने धंधे के साथ-साथ
संभालता है
हजार गायों वाली
गऊशाला
सयाने -समझदार सोचते हैं
जिस दिन न रहेगा सेठ
कौन करेगा इतना काम
इनकी जगह?