”दिल्ली विधान सभा के लिए किसे जिता रहे हैं?“
विविध श्रमकर्मियों के बीच
चौराहे पर रेहड़ी पर
चाय की दुकान जगाये हुए बुजुर्गवार से पूछा
”ओय कोई भी जीते
मुझे क्या फर्क पड़ना है बाबू जी
मुझे तो रेहड़ी के साथ ही रहना है
बस मेरी रेहड़ी
और दोनों हाथ सलामत रहें“
मुझे लगा कि
मैं पूरे चौराहे से यही सवाल कर रहा हूँ
और यही जवाब भनभना रहा है पूरे माहौल में।
-5.1.2015