एक ही अइसन डगर कि जे पर
उत्सव कभी न कोनो समय इहाँ पर
ढोल-नगाड़ा बजलइ
कभी न कोयल कूकल आके
गीत न कोनो गयलकऽ
जेठ माह से इहाँ न कभियो
सीतल चंदा छयलकऽ!
इहाँ न आयल कोनो प्रेमी
करके कुछ सिंगार
इहाँ न मिललइ केकरो अप्पन
प्रीतम से उपहार!
छिपल घास में ई पगडंडी
तोहरे जोहे बाट।
आबऽ जरा सजाबऽ एकरा
बदलऽ हमर घाट।।