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एशिया / महेन्द्र भटनागर

संगठित संघर्षरत सम्पूर्ण अभिनव एशिया
जागरित आलोकमय प्रत्येक मानव एशिया,
मुक्त अब साम्राज्यवादी चंगुलों से हो रहा
सभ्यता-साहित्य-संस्कृति-अर्थ-वैभव एशिया !

चीन-भारत मित्राता का जल रहा उर-उर दिया
स्नेह-पूरित ज्योति से जिसने उजागर युग किया,
वादियों दुर्गम पहाड़ों जंगलों औ’ मरुथलों
में बसे हर ग्राम-जनपद को बना सुर-पुर दिया !

दृढ़ सुरक्षा-भावना ले पंच शर्तों की शिला
सर उठाये व्योम में अविचल खड़ी सबको मिला,
शांति से सहयोग से अविराम निज-गन्तव्य तक
सत्य, पहुँचेगा नये युग-साधकों का काफ़िला !

अब न होगा चूर सपना आदमी की प्रीत का,
और बढ़ता जायगा विश्वास उसकी जीत का,
आँसुओं का शाह भी अब छीन पाएगा नहीं
माँ-बहन के कंठ से स्वर-राग सावन-गीत का !