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एहिना रहब हम / मन्त्रेश्वर झा

कायर जकाँ मरैत रहब रोज रोज
आ तकैत रहब जीवन
जरब नहि, बनब नहि बाती
आ करैत रहब प्रकाश बनबाक आकांक्षा
लटपटायल रहब अहर्निश माया मे
आ तकैत रहब राम
करैत रहब यश-कीर्ति पद-पदवी
हँसोथबाक व्यापार
आ होयब नहि बदनाम
करब केवल अपना लेल कल्पनाक खेती
आ छीटैत रहब अपन अपन
सपनाक बीया
तऽ सहेजब कोना आ
अंगेजब कोना
प्रकृतिक विराट सौन्दर्य
पक्षीक कलरव संगीत,
गाछ-पात, फूलक
सहज औदार्य,
सिखाओत की गहन निविड़
रातिक अन्हार
चीन्हब कोना सूर्यक ताप परिताप
बुझब कोना चन्द्रमाक चमकबाक रहस्य
जते लगायब पहरा अपना चारूकात
तते बनायब अपना लेल कारागृह
समटैत रहब जते तते
अपना लेल केवल,
होइत रहब दुर्बल।
जतेक जोर सँ दाबब सुरक्षाक मुट्ठी,
तत्तेक होयब असुरक्षित
आ खुजैत रहब, खोलैत रहब
होयब जते व्यक्त।
पबैत रहब, बनैत रहब सम्पूर्ण आकाश।
हँ, हँ बुझल अछि हमरो
ज्ञान अछि सभटा
गीता पुराण भागवत पढ़ने छी
हमहूँ
सुनने छी हमहूँ
हमरो पितामह प्रपितामह
छलाह नामी गरामी पंडित
मुदा हमरा किताबी बातसँ
नहि भरमाउ
कविकाठी जी
जहिना भऽ एलैए,
तहिना हेतै आगुओ
एहिना रहब हमहूँ
आ एहिना रहलाह हमर पुरुखा।