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ऐलान-ए-जंग / पल्लवी मिश्रा

सीमा के उस पार से दुश्मन ने ललकारा है,
तो उन तक पहुँचाने को यह पैगाम हमारा है,
उनकी धरती के एक इंच पर भी बुरी नजर न डालेंगे
पर कश्मीर से कन्या तक हर जर्रा हमारा है।

सीमा रेखा तोड़कर दुश्मन जो कदम इधर बढ़ाएगा
तो कदमों से चलकर वापस लौट नहीं वह पाएगा
गर गोली और गोलों से भारत की सीमा भेदेगा
तो इस धरती माँ की सौं, वह सूरज न देखेगा।

आजादी के हर जश्न पर यही हमारा नारा है
कश्मीर से कन्या तक हर जर्रा हमारा है

अमन का भी संदेशा भेजा, इस कान सुना, उस कान उड़ाया
झटक दिया बेदर्दी से, जब दोस्ती का हाथ बढ़ाया
रहम के जो काबिल ही नहीं, उस पर दया दिखाना क्या,
आँखें मूँदे हो चूर नशे में, उसे आईना दिखाना क्या?

”रहम नहीं अब रण होगा“ यही संकल्प हमारा है
कश्मीर से कन्या तक हर जर्रा हमारा है।

कश्मीर है मुकुट वतन का कोई आँख उठाकर देखे तो
कट जाएँगे हाथ पलों में, कोई हाथ बढ़ाकर देखे तो
अपनी ताकत, अपना जौहर फिर इकबार दिखाना होगा
धरती माँ की ममता का ऋण देकर लहू चुकाना होगा

धरती माँ ने कातर होकर फिर से हमें पुकारा है
कश्मीर से कन्या तक हर जर्रा हमारा है।