हम क्यों चाहते हैं
हमारा बच्चा वही करे
जैसा हम चाहें
जीवन को हमारे अनुभवों से समझे
ज़रा सोचिये
हमारी यह चहत
छीन लेती है बच्चे से उसकी आज़ादी
नहीं घड़ने देती नये जीवन-मूल्य
कोल्हू के बैल सा वह
चलने को होता है विवश
रुका हुआ वहीं का वहीं
उतार दीजिए
उसकी आँखों से रूढ़ियों का चश्मा
गिरता-पड़ता ढूंढ लेगा वह अपनी दिशा