‘पिक्चर’ देख रहा होता हूँ
तो रो पड़ता हूँ!
ऐसा क्यों होता है 
मैं ऐसा क्यों करता हूँ ?
बच्चों को अच्छी लगती है 
मेरी नादानी,
इन्द्रधनुष रच देता 
मेरी आँखों का पानी,
ख़ुद को भी सुन पड़े न 
ऐसी आहें भरता हूँ!
बंद दृगों में 
‘सीन’ फिल्म के चलने लगते हैं,
अन्ध गुफाओं में 
जुगनू-से जलने लगते हैं,
आखेटी सपनों से 
मृग-शावक-सा डरता हूँ!
देख न पाया पूरी ‘मूवी’
अब तक मैं कोई,
धूमिल होने लगी दृष्टि 
तो लहरों में धोयी,
मझधारों की पतवारों से 
पार उतरता हूँ!