ऐसा हो जाता है कभी-कभी
जैसा आज हो गया
मेरा सदा मुट्ठी में
रहने वाला मन
चीरकर मेरी अंगुलियां
मेरे हाथ से निकल कर खो गया
गिरा नहीं है वह धरती पर
सो तो समझा हूँ
तब उड ही गया होगा वह
आसमान में
ढूंढूं कहां उसे इस बिलकुल
भासमान में
भटक रहा हूँ इसीलिए उसे खोजता हुआ
अबाबील में कोयल में सारिका में
चंदा में सूरज में मंगल में तारिका में!