बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
ऐसी बोलो कौनऊँ बानी।
ना काऊ की जानीं।
सगुन मैं होय, ना निर्गुन में।
नाहिं बेदन में धानी।
ना आकासैं नंपातालैं,
नई देवतन जानी।
ना भूतन में ना प्रेतन में,
ना जल जीब बखानी
कयें ईसुरी जोड़ मिला दो।
जब जानैं हम ज्ञानीं।