केदार घाटि के जल प्रलय में,
दो बेटियों ने, खुद,
मौत की जंग लड़कर ।
मलवे में दबे अपने पिता को,
कोमल उँगलियों से,
खुरचकर निकाला ।
चुनौति दी है, मौत को,
अपने बुलंद हौसलों स,े
मिषाल दी है ।
भूर्ण हत्या के हत्यारों को
बेटी की षक्ति को,
परखकर देख लेना ।
जीवन की कठिनाइयों में,
ढाल बनकर खड़ी हो जायेगी,
तेरी राहों में ।
षक्ति बाजुओं में ही नहीं,
भावों में हुआ करती है ।
इसीलिए तो चींटी भी,
पहाड़ो पर चढ़ा करती हैं।
कठिन डगर में,
बेटी को देख लेना,
बढ़ने के लिए वह,
बिजली की कड़क रखती है ।
तूफानों में चिराग बुझ भी जाये तो,
चमकती बिजली भी,
धरा प्रकाषित करती है ।