♦ रचनाकार: अज्ञात
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ऐसे कपटी श्याम कुंजन बन छोड़ चले उधो ३
जो मैं होती जल की मछरिया
श्याम करत स्नान चरण गह लेती मैं उधो /ऐसे कपटी ----2
जो मैं होती चन्दन का बिरला
श्याम करत श्रृंगार मैथ बिच रहती मैं उधो /ऐसे कपटी -----2
जो मैं होती मोर की पांखी
श्याम लगाते मुकुट मुकुट बिच रहती मैं उधो /ऐसे क पटी ----2
जोमें होती तुलसी का बिरला
श्याम लगाते भोग थल बिच रहती मैं उधो /ऐसे कपटी -------2
जो मैं होती बांस की पोली
श्याम छेड़ते राग अधर बिच रहती मैं उधो /ऐसे कपटी-----2
जो मैं होती बन की हिरनिया
श्याम चलते बाण प्राण तज देती मैं उधो /ऐसे कपटी -----2