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ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद / रामकुमार कृषक

         ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद,
मुर्दा मर्दों की मरदूदी से तू है आबाद !

     तेरी कुण्ठाएँ तेरा धन,
     तेरा भूषण, तेरी उलझन,
     आज़ादी से तेरी अनबन
     क्योंकि तू आज़ाद !
         ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद,
मुर्दा मर्दों की मरदूदी से तू है आबाद !

     तेरी धरती, तेरा अम्बर,
     तेरापन, तेरा आडम्बर,
     सब सारा हो गया दिगम्बर,
     तू, तेरी औलाद !
         ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद,
मुर्दा मर्दों की मरदूदी से तू है आबाद !

     तुझ पर हा-हा, आहा हरदम,
     छल के बल का पल-पल उपक्रम,
     ठोंक रही है दानवता ख़म,
     मानवता नाशाद !
         ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद,
मुर्दा मर्दों की मरदूदी से तू है आबाद !

     बान्ध बुराई, पग में पायल,
     अच्छाई को करती घायल,
     पर तू कब इस सबका क़ायल,
     पत्थर दिल फ़ौलाद !
         ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद,
मुर्दा मर्दों की मरदूदी से तू है आबाद !

     जँगल शायद तेरी मँज़िल,
     उसी ओर बढ़ता बन बेदिल,
     जिस दिन भी वह जाएगी मिल,
     तू उस दिन बरबाद !
         ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद,
मुर्दा मर्दों की मरदूदी से तू है आबाद !

4 जुलाई 1971