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ऐ लड़की-2 / देवेन्द्र कुमार देवेश

ऐ लड़की!
सोचता हूँ मैं जब भी तुम्हारे और अपने बारे में
तो सोचता हूँ उस रिश्ते की बाबत
जो हम दोनों के परिचय से बना है हमारे बीच
और उस रिश्ते के बारे में भी
जैसा यह दुनिया हमारे बीच सोचती है।
सोचता हूँ / एक तुम्हारी अपनी दुनिया
हम दोनों के मिलने से बनी एक और दुनिया
और दुनिया द्वारा गढ़ी हुई
हम दोनों की एक अलग दुनिया
हरेक दुनिया बिल्कुल अलग है दूसरे से
पर हरेक में उपस्थिति है हमारी।
सोचता हूँ / करें हम साथ-साथ अथवा अलग-अलग,
आख़िर तय तो हमें ही करना है
कि हमें किस दुनिया में रहना है।