ऐ हवाओं!
ले चलो उस लोक में,
हो जहां सुरभित धरा मुकुलित चमन।
हो जहां बस प्रेम की पगडांडियां,
हाथ में हाथों को थामें पीढ़ियां।
हो जहां हमवार पथ सबके लिए,
और सबके ही लिए सब सीढियां।
ऐ दुआओं!
ले चलो उस लोक में
हो जहां आशीष की वर्षा भरी सुरभित पवन।।
हो जहाँ पर देव का स्थान ऐसा,
अर्चना अवसर मिले बस एक जैसा।
पुष्प सबरंगी चढ़े हों देव शीशों,
पूजनो में प्रथम हो आसित न पैसा।
ऐ सदाओं!
ले चलो उस लोक में
होठ सबके साथ मिल करके करें वर्णित भजन।
हो उड़ाने एक सी हर पंख की,
और मुस्काने दिखें हर अंक की।
पर्वतों पर चढ़ें, उतरें घाटियां,
टोलियां हों साथ राजा रंक की।
ऐ घटाओं!
ले चलो उस लोक में,
जहाँ पर हो धूल कण के भाग्य में अंकित गगन।।