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ओछा है मेरा प्यार / नंदकिशोर आचार्य

कितना अकेला कर देगा मेरा प्यार
तुम को एक दिन
अकेला और सन्तप्त
अपनी समूची देह से मुझे सोचती हुई
तुम जब मुस्कुराओगी-औपचारिक !

प्यार मैं तुम्हें तब भी करता रहूँगा
शायद अब से अधिक
क्योंकि मैं हुँगा सन्ताप का कारण तुम्हारे।

आज तुम्हें प्यार करते हुए
यह सब सोच कर मैं विकल
चेहरा छुपा लेता हूँ
तुम्हारे कोमल उरोजों के बीच।
तुम ग्रीवा पर, लवों पर, होठों पर,
पलकों पर, माथे पर
हौले-से चूम लेती हो मुझे
यों निर्बन्ध करती हो।

कितना ओछा है मेरा प्यार,
कितना आत्मकेन्द्रित,
तुम्हारे प्यार के आगे !

सब कुछ जान कर भी मैं
अपने से बाँधता हूँ तुम्हें-
सब कुछ जान कर भी तुम
मुझे निर्बन्ध करती हो।

(1987)