ओझा ओछा पाय के, झूठ देय विश्वास।
धरनी यहि पाषंडते, होत नरकमें वास॥1॥
ओझा कोऊ जनि छुवै, मति बैठरे पास।
नगर ते मरि निकारिये, कही जो धरनी दास॥2॥
धरनी देही करनी, पाँच भूत जेहि लांग।
तासु निकाई लेहु करि, जा कछु माथे भाग॥3॥
धरनी ओझा राम करु, काया करन जानु।
मर्म भूत बहि जान दे, कही हमारी मानु॥4॥
सुनु अपराधी ओझवा, धरनी कहै पुकारि।
अजहुँ साधुकी शरन भजु, लैहैं तोहि उबारि॥5॥