आइस सुग्घर परब सुरहुत्ती अऊ देवारी
चल नोनी, हम, ओरी, ओरी दिया बारबो।
जउन सिपाही जी परान होमिन स्वदेश बर,
पहिली उंकरे आज आरती, हम उतारबो।
वो लछमी के पूजा हमला करना हेबय
जेहर राष्ट्र-सुरक्षा-कोष हमर भर देही।
उही सोन-चांदी ऊपर हम फूल चढाबो
जेकर से बैरी मारे बर, गोली लेही।
झन लेबे बाबू रे, तै फूलझड़ी फटाका
बिपदा के बेरा मां दस-पंघरा रूपिया के।
येखर से तो ऊनी कम्बल लेबे तैहर
देही काम जाड़ मां, एक सैनिक भइया के
राउत भइया, चलो आज सब्बो झिन मिलके
देश जागरण के दोहा हम खूब पारबो।
सेना मा जाए खातिर जे राजी होही
आज उही भय्या ल हम्म तिलक सारबो।
देवारी के दिया घलो मन क़हत हवयं के
भइया होरे, कब तुम्मन अंजोर मं आहू?
खेदारों मेड़ों के रावन मन ला पहिली
फेर सुरहुती अउ देवारी खूब मनाहूं।