ओस और दुःख
जुड़े हैं एक - दूसरे से
अँधेरा लाता है ओस
विवशता और अभाव से
दुःख
सूरज की कुछ किरणें
उड़ा देती हैं
लम्बी रात से उपजी ओस
सुख के चंद पल
भूला देते हैं
सालों का दुःख
ओस
पवित्र पानी
बिलकुल दुःख में
निकले आंसू की तरह
एक नहीं हैं ओस और दुःख
फिर भी कितने करीब हैं
आगाज़ से अंत तक !