ओस में डूबता अन्तरिक्ष
विदा ले रहा है
अँधेरों पर गिरती तुषार
और कोहरों की नमी से!
और यह बूँद न जाने
कब तक जिएगी
इस लटकती टहनी से
जुड़े पत्ते के आलिंगन में!
धूल में जा गिरी तो फिर
मिट के जाएगी कहाँ?
ओस की एक बूँद
बस चुकी है कब की
मेरे व्याकुल मन में!