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ओस गिरै आंगन / मुकेश कुमार यादव

ओस गिरै आंगन।
आरु गिरै प्रांगन।
शीत लहर।
करै कहर।
चारों पहर।
गांव-शहर।
थर-थर-थर
हिम-कण।
वस्त्र विहीन तुहिन कण।
पल-पल क्षण-क्षण।
कास-पलास-अशोक गाछ।
झर-झर-झर
हवा सिसकलो।
कटी-कटी खिसकलो।
आगू बढ़लो।
जाय छै चढ़लो।
सर-सर-सर
ऐंगना ऐलै धूप।
मनो के भावै ख़ूब।
मौसम के नया रूप।
सुग्गा-मैना-कौवा।
फर-फर-फर
आक-धतूरा।
अच्छत पान पूरा।
चीलम सोटै।
दिन-रात घोटै।
बम-बम भोले।
जय शिव-शंकर।
हर-हर-हर