टहनी को चिन्ता है जड़ की
जड़ को फूलों की
इसी तरह से गुज़र-बसर चलता है मौसम में
आएगी चिड़िया पहले
पत्तों से बतियाएगी
धूप-हवा का हाल-चाल
ले धीरे उड़ जाएगी
ओस भरी दूबों पर सरकी
छाया धूपों की
यही प्यार नहलाता सबको खुशी और गम में
शनिगांधार बजाती लहरी
हरियाती लतरें
उजली-नील धार में लिखती
मन की कोमल सतरें
नहीं सूखती नदी आज भी
गाँव सिवाने की
फसलों के सुर में बजती हैं तानें सरगम में
सड़क-किनारे हाथ उठाये
घर की नई कतारें
खिड़की-दरवाजे से होकर
पहुंची जहां बहारें
मैली होकर भी उजली हैं
आँखें सिलहारिन की
अपने भीतर कई हाथ उगते जिनके श्रम में ।