Last modified on 29 सितम्बर 2009, at 22:46

ओ अपरिपूर्णता की पुकार / हरिवंशराय बच्चन

ओ अपरिपूर्णता की पुकार!

शत-शत गीतों में हो मुखरित,
कर लक्ष-लक्ष उर में वितरित,
कुछ हल्का तुम कर देती हो मेरे जीवन का व्यथा-भार!
ओ अपरिपूर्णता की पुकार!

जग ने क्या मेरी कथा सुनी,
जग ने क्या मेरी व्यथा सुनी,
मेरी अपूर्णता में आई जग की अपूर्णता रूप धार!
ओ अपरिपूर्णता की पुकार!

कर्मों की ध्वनियाँ आएँगी,
निज बल पौरुष दिखलाएँगी,
पर्याप्त, अखिल नभ मंड़ल में तुम गूँज उठी हो एक बार!
ओ अपरिपूर्णता की पुकार