Last modified on 4 अगस्त 2012, at 11:45

ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे / अज्ञेय

 ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे!
मेरा जीवन तेरी वेदी, अंजलि बेसुध प्राणों ने दी;
पीड़ा से तीखे, हृद्भेदी
भावों से जलते दीपों की सदा आरती तुझ को घेरे!

फूल नहीं थे, तू ले आया, मैं अवाक् थी, तू ने गाया :
बिना किये पूजा फल पाया,
मिटते-मिटते जाना मैं ने लीन हुई मैं उर में तेरे!
ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे!

1936